नई दिल्ली. आज अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) है. भारत में हमेशा से ही नर्सों को निस्वार्थ सेवा और मानवतापूर्ण व्यवहार के लिए जाना जाता है लेकिन कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के भीषण दौर में अपनी और अपने परिवारों की जिंदगियों को जोखिम में डालकर लाखों लोगों की जान बचाने वाली नर्सों को हमेशा याद रखा जाएगा. पिछले दो सालों में बेहद संक्रामक बीमारी को लेकर जहां पूरी दुनिया में डर और बेचैनी फैली थी वहीं अस्पतालों में नर्सें पूरी तल्लीनता से अपनी ड्यूटी निभा रही थीं. यही वजह थी कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने इन्हें कोरोना योद्धा की उपाधि दी.
आज नर्स दिवस के मौके पर हम आपको ऐसी नर्सिंग ऑफिसर (Nursing Officer) से मिलवाने जा रहे हैं, जिन्होंने 31 साल की अपनी सेवा में हमेशा चुनौतीपूर्ण मरीजों की देखभाल की है, वहीं जब कोरोना का सबसे कठिन समय आया तो उन्होंने ही दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में सबसे पहले मोर्चा संभाला और अभी तक संभाले हुए हैं.
आज से दो साल पहले 2020 में जब सबसे पहले कोरोना के मामले रिपोर्ट हुए तो वे दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में पहुंचे. यह वह समय था जब कोरोना को लेकर बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी और विदेशों में एक-दूसरे के संपर्क से इस बीमारी के फैलने की सूचना मिल रही थी. चीन के वुहान में हुए कोरोना आउटब्रेक के बाद जब पहली फ्लाइट दिल्ली पहुंची तो उसमें ज्यादातर चीन में पढ़ने वाले युवा थे, जिनमें कुछ भारतीय और कुछ चाइनीज थे. कुछ महिलाएं भी थीं. करीब 10 संदिग्ध इस दौरान दिल्ली के आरएमएल अस्पताल में पहुंचे. जिनके लिए पहला कोविड वॉर्ड बनाया गया और इस वॉर्ड की इंचार्ज बनाई गईं नर्सिंग ऑफिसर शेफाली मलिक. आज अस्पताल में ही नहीं बल्कि यहां कोरोना से परिजनों को ठीक करके ले गए लोगों में शायद ही कोई ऐसा होगा जो इनके जज्बे और हौसले की तारीफ न करता हो.
लाशों के ढेर देखना आसान नहीं था..
54 साल की उम्र में पहली बार पीपीई किट पहनने वाली शेफाली न्यूज 18 हिंदी से बातचीत में बताती हैं कि साल 2020 में यह अचानक आई आपदा थी. बिल्कुल ऐसे जैसे शांति के दौर में अचानक युद्ध छिड़ गया हो इसके लिए डॉक्टरों की टीम बनाई गई, नर्सिंग स्टाफ की टीम बनी, 5-6 घंटे तक लगातार पीपीई किट पहननी थी. कोविड के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी तो जो मरीज आ रहे थे, उनकी सुरक्षा के लिए कोविड वॉर्ड में एसी नहीं चलाना था. एक घंटे में ही पीपीई किट पहनकर हालत खराब होती थी. मरीज अलग घबराए हुए थे. मरीजों के सगे-संबंधी रोते थे और मरीज से मिलना चाहते थे लेकिन ये करना संभव नहीं था. यह बड़ा कठिन समय था लेकिन इससे भी ज्यादा भीषण समय कोरोना की दूसरी लहर में देखा. जब लाशों के ढेर लग गए. मॉर्चरी में 3-3 घंटे का इंतजार चल रहा था. कोविड वॉर्ड में मरीज लगातार मर रहे थे.
सिंगल मदर और आरएमएल की नर्सिंग ऑफिसर शेफाली अपने दोनों बच्चों के साथ.शेफाली कहती हैं कि उन्होंने 31 साल की अपनी नर्सिंग सेवा में अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में काम किया. वहां एक से एक गंभीर मरीज आते थे लेकिन कोरोना में जो हाहाकार देखा था वह काफी मुश्किल भरा था. रोजाना ड्यूटी पर आना था तो कई बार रात में जाकर क्रोसिन खाकर सोना पड़ता. फिर सुबह 6 बजे से शाम तक ड्यूटी. मानसिक तनाव बढ़ गया था. कोरोना से जवान-जवान बच्चों को मरते देखती थी तो अपने बच्चे याद आने लगते थे. कई बार हताशा भी होती लेकिन फिर किसी की जिंदगी बचाने के लिए जुटना होता था. दिन रात मन में यही चलता रहता कि किसी की मौत न हो. सभी को कैसे बचाया जाए.
सिंगल मदर होने के चलते रहीं चुनौतियां लेकिन बच्चों ने दिया साहस
शेफाली बताती हैं, मैं सिंगल मदर हूं और मेरे दो बच्चे हैं. कोरोना के दौरान जब में 12-14 घंटे तक कोविड ड्यूटी करके घर जातीं तो उनसे दूरी बनानी पड़ती थी. बच्चों को कुछ न हो जाए इसके लिए मैंने अपना कमरा अलग कर लिया. मेरा बाथरूम अलग था. मेरे 3 जोड़ी कपड़े अलग थे, जिन्हें में अस्पताल आने-जाने में पहनती. कहां एक दिन भी बच्चों से दूर नहीं रहा जाता था. कोविड में कितने महीने गुजर गए जब बच्चों को छुआ नहीं. मैंने उन्हें कमरे के अंदर आने के लिए मना किया हुआ था. डर था कहीं बच्चे भी कोरोना संक्रमित हो गए तो क्या होगा. बेटी काफी परेशान होती. हालांकि बच्चों ने बहुत साहस दिया. भारत में कोरोना के हालात देखने के बाद वे गर्व करते और कहते कि मम्मी आप बहुत अच्छा काम कर रही हो. बहुत लोगों को आपकी जरूरत है. यह सुनकर साहस और हौसला मिलता था. फिर परेशानियां बहुत हल्की लगती थीं और मैं अपने सहयोगियों को भी ये हौसला दे पाती थी.
सिंगल मदर होने के चलते रहीं चुनौतियां लेकिन बच्चों ने दिया साहस
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FIRST PUBLISHED : May 12, 2022, 17:16 IST