सुमित कुमार (लेखक पत्रकार हैं)
कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन ने हमारे जीवन जीने के तरीकों में काफी बदलाव लाया है. निजी तथा सरकारी ऑफिस के कार्यों को निरंतर ऑनलाइन शिफ्ट किया जा रहा है. वर्क फ्रॉम होम का कल्चर भी बढ़ता जा रहा है. वर्क फ्रॉम होम कल्चर के बढ़ने का महत्वपूर्ण कारण है तकनीक में हो रहा निरंतर विकास. स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी तकनीक का सहारा लिया जा रहा है. भारत जैसा देश जहां ज्यादातर लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, यहां भी अब तकनीक के माध्यम से स्वास्थ्य सुविधा मुहैया की जा रही है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान में चल रही टेली-मेडिसिन योजना है.
लेकिन सवाल है कि क्या भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को अन्य कार्यों की तरह ऑनलाइन शिफ्ट किया जा सकता है. क्या मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में नई तकनीकों का उपयोग संभव है. यदि यह संभव है तो भारत जैसे देश में कितना कारगर साबित होगा, जहां आज भी मानसिक स्वास्थ्य को टैबू के रूप में देखा जाता है.
2020 से मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में तकनीक का इस्तेमाल
भारत में सरकार के द्वारा मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में तकनीक का पहला प्रयोग 2020 में किया गया. कोविड महामारी के कारण लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहराते संकट को देखते हुए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने नेशनल मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (NIMHANS), बैंगलोर और इंडियन साइकियाट्रिक सोसाइटी (IPS) के साथ मिलकर टेली मनोचिकत्सा दिशानिर्देश जारी किया था. पूरे भारत में डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य परामर्श को लागू करने के लिए तथा मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेसनल्स का मार्गदर्शन करने के लिए यह पहली पहल थी. दूसरे शब्दों में कहें तो यह भारत के मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में तकनीक के उपयोग की नींव रखी गई थी.
नेशनल टेली मेंटल हेल्थ कार्यक्रम शुरू
इसी कड़ी में बड़ा निर्णय इस बार के बजट सत्र में लिया गया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल टेली मेंटल हेल्थ कार्यक्रम की घोषणा की. भारत में यह घोषणा अपने आप में ऐतिहासिक है. नेशनल टेली मेंटल हेल्थ कार्यक्रम में सरकार द्वारा NIMHANS को नोडल केंद्र और IIT बैंगलोर को तकनिकी सहायता केंद्र के रूप में विकसित करने की बात कही गई. इसके साथ ही इस कार्यक्रम में 23 टेली मानसिक स्वास्थ्य केन्द्रों का एक नेटवर्क प्रस्तावित किया गया है. भारत में जहां आज भी लोग फेस टू फेस मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं और उसके समाधान पर बात करना जरुरी नहीं समझते हैं.
वैसे में ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य और उसके परामर्श को लेकर लोगों में जागरूकता लाना भविष्य में सबसे बड़ी चुनौती है. विश्व के साथ-साथ भारत भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट हो रहा है, मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र को भारत में ऑनलाइन शिफ्ट करना चुनौती पूर्ण कार्य है. जहां लोगों में मानसिक स्वास्थ्य के लिए थेरेपी ली जाती है इसकी जानकारी का अभाव है वैसे में ऑनलाइन थेरेपी के बारे में जागरूकता लाना कठिन होगा.
ऑनलाइन स्वास्थ्य देखभाल कारगर है?
ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को ई-थेरेपी, ई-काउंसिलिंग, टेलीथेरेपी, साइबर- काउंसिलिंग और टेली-काउंसिलिंग भी कहते हैं. ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य देखभाल मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एक पारंपरिक ऑफिस से बाहर वर्चुअल दुनिया में स्थानांतरित करता है. ऑनलाइन मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, फोन सेशन, ऑनलाइन चैट, वॉइस मैसेज, इमेल और टेक्स्ट सेशन शामिल होते हैं. अब सवाल यह है कि क्या ऑनलाइन स्वास्थ्य देखभाल कारगर है, कई अध्ययनों में यह साफ-साफ कहा गया है कि यह कारगर है. द लैंसेट के अध्ययन भी यही कहते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य में ऑनलाइन देखभाल काम करती है. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सेशन्स के साथ मानसिक स्वास्थ्य के लिए व्यक्तिगत चिकत्सा की तुलना करने वाले 4,300 से अधिक क्लाइंट सहित 57 अध्ययनों के एक मेटा विश्लेषण में पाया गया कि दोनों तरीके रोगियों के लिए समान रूप से सहायक थे.
टेली-परामर्श सस्ती और प्रभावी मानसिक सेवाओं के राह को आसान करेगा
सवाल है कि भारत में यदि मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र को ऑनलाइन शिफ्ट किया जाता है तो इससे फायदे क्या होंगे. निश्चित रूप से यह राष्ट्रीय स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में चल रही पुरानी रवायतों को बदलेगा. व्यापक स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य पर की जाने वाली बातचीतों को सामान्य बनाएगा. इसके साथ ही मानसिक स्वास्थ्य को लेकर स्टिग्मा, गलत सूचना और भ्रांतियों को कम करेगा और लोगों के बीच मानसिक स्वास्थ्य को दुरुस्त करने के लिए मदद मांगने को प्रोत्साहित करेगा. वास्तव में यदि भारत में मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र ऑनलाइन शिफ्ट होता है तो टेली-मनोचिकत्सा और टेली-साइकोथेरेपी, या टेली-परामर्श क्षेत्र में मान्यता प्राप्त विशेषज्ञों द्वारा देश भर में सुलभ, सस्ती और प्रभावी मानसिक सेवाओं के राह को आसान करेगा. इसके अलावा, यह डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य पाठ्यक्रमों में प्रशिक्षण और ऑनलाइन सर्टिफिकेशन को भी बढावा देगा. इससे जमीनी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में कार्य करने वाले प्रोफेशनल्स में इजाफा होगा.
आम लोगों की फायदे की बात करें तो मानसिक स्वास्थ्य जैसी जरुरी सेवाएं जो शहरी क्षेत्रों तक सीमित है, वह सूदूर ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँच पाएगा. मानिसक स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों की सेवा आसानी से ग्रामीण क्षेत्रों के लोग ले पाएंगे. उन्हें मानिसक स्वास्थ्य की सेवा लेने के लिए शहर तक की यात्रा नहीं करनी होगी. इससे उनका समय और धन दोनों बचेगा. वह अपने समय के अनुकूल इन सेवाओं तक पहुंचेंगे.
और डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य को जनमानस तक पहुंचाना जरूरी
भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल को डिजिटल शिफ्ट करने में कई चुनौतियां आने वाली है. ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल साक्षरता आज भी एक महत्वपूर्ण चुनौती है. इसके साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की कनेक्टिविटी भी सीमित है. ग्रामीण क्षेत्रों में निरंतर बिजली की समस्या बनी रहती है जिस कारण नेटर्वक में गड़बड़ियां भी आती है. भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल दिशानिर्देश से संबंधित नैतिक और कानूनी कमियाँ हैं. मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में फेस टू फेस मूल्यांकन में देरी को संभाला जा सकता है लेकिन वर्चुअल माध्यम में चिकत्सा मूल्यांकन में सीमाएं हो सकती हैं. लोगों की निजी जानकारी की सुरक्षा भी एक अहम चुनौती है. टेली मानसिक स्वास्थ्य देखभाल या मानसिक स्वास्थ्य की ऑनलाइन देखभाल को डिजिटल साक्षरता, डेटा सुरक्षा और आम लोगों की इन सेवाओं तक पहुंच बढ़ाने के प्रयासों से अलग नहीं किया जा सकता है.
सरकार के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेसनल्स, मीडिया और नीति निर्माताओं से मानसिक स्वास्थ्य को डिजिटली ले जाने में जिम्मेदारी पूर्वक कार्य करने की जरुरत है. क्योंकि आम जनमानस के बीच यही प्रभाव डाल सकते हैं और डिजिटल मानसिक स्वास्थ्य को आम जनमानस तक पहुंचा सकते हैं. इसके साथ ही आम लोगों को भी मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही जरुरी समझना होगा.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है)
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Tags: Health, Mental health
FIRST PUBLISHED : May 30, 2022, 21:59 IST