अरबपति हो या दिहाड़ी मजदूर, कोई भी इससे अछूता नहीं है. देश में 13 से 15 साल के हर चार किशोरों में से एक और कारपोरेट सेक्टर में हर 2 प्रोफेशनल्स में से 1 डिप्रेशन का शिकार है. भास्कर की खबर के अनुसार हमारे आसपास लाखों लोग ऐसे हैं जो डिप्रेशन से जूझ रहे हैं. डिप्रेशन से जुड़े मुद्दों पर वरिष्ठ पत्रकार ने मीडिया प्लेटफॉर्म इंक्वायरी के लिए नीरजा बिड़ला से बात की. पेश है इस बातचीत के प्रमुख अंश-
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बच्चे खुद को चोट पहुंचाएं, उससे पहले ही उन्हें संभालेंनीरजा ने बताया कि वह पिछले 10 सालों से दो स्कूल संभाल रही हैं. उनमें कई बच्चे और पैरेंट्स इस समस्या से जूझ रहे थे. इसके बाद उन्होंने तय किया कि ह इस मुद्दे पर काम करेंगी. लोग यह पहचान नहीं पाते हैं कि वे डिप्रेशन के शिकार हैं, न दूसरों को देखकर भांप सकते हैं. यदि किसी को पता भी हो तो वह बताने में शर्म महसूस करता है. दरअसल, इसका कोई पैमाना नहीं है. इसे देखा नहीं जा सकता. इसलिए जान भी नहीं पाते कि डिप्रेशन आपको और आपके परिवार को किस तरह प्रभावित करता है.
आजकल के युवा सोशल मीडिया पर वर्चुअल लाइफ जीते हैं, जबकि उनका वास्तविक जीवन अलग बिल्कुल होता है. दोनों जीवन में अंतर के कारण ही वे चिंता, स्वाभिमान में कमी जैसे मामलों से जूझते हैं. अधिकांश किशोर और युवा सोशल मीडिया पर परफेक्ट लाइफ प्रोजेक्ट करने की कोशिश करते हैं. वास्तविक जीवन में वह न मिलने से वे डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं.
हेल्पलाइन बनाई गई और 60 हजार कॉल्स आए
नीरजा ने डिप्रेशन से जूझ रहे लोगों को बेहतर जीवन देने के लिए मुंबई में बीएमसी की मदद से हेल्पलाइन स्थापित की है. इसमें देशभर से 7 महीने में 60 हजार कॉल्स आई हैं. नीरजा इसे बड़े संकट का एक हिस्सा बताती हैं. उनका कहना है कि जब आप लगातार अच्छा महसूस न करें, माहौल बदलने, काम बंद करने या मनपसंद काम करने से भी अच्छा महसूस न हो, नींद न आए, लगे कि सब तबाह हो गया है तो समझ लें कि आप डिप्रेशन में हैं और तत्काल विशेषज्ञ की राय की जरूरत है. यह स्थिति मस्तिष्क में केमिकल स्ट्रक्चरिंग में बदलाव से होती है. इसके लिए आसपास का माहौल आनुवंशिकता जैसे कारक जिम्मेदार हैं.
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कॉरपोरेट्स अपनी कमजोरी बताने से झिझकते हैं
कॉरपोरेट मेंटल हेल्थ के मुद्दे पर नीरजा का कहना है कि पुरुष अपनी कमजोरी बताने से झिझकते हैं, लेकिन हेल्पलाइन पर 80 फीसदी कॉल्स पुरुषों के मिले हैं. देश में 48 फीसदी कॉरपोरेट्स मेंटल हेल्थ से जूझ रहे हैं, पर वे स्वीकारते नहीं. उनका कहना है कि इतने कॉल्स इसलिए मिले क्योंकि इनकी पहचान गुप्त रखी जाती है. कोई भी चीज हासिल न होने पर बच्चों द्वारा खुद को चोट पहुंचाए जाने के मुद्दे पर नीरजा ने कहा कि किसी की भी भावनाओं को कमतर न आंकें. माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को ऐसी स्थिति में पहुंचने से पहले ही संभालें. शुरुआत में ही ऐसे उपाय करें, ऐसे मेकेनिज्म विकसित करें कि बच्चा खुद को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में न पहुंचे.