जिन बच्चों ने एक या दो बार एंटीबायोटिक दवा ली है उनमें सियलिक और अस्थमा का खतरा बढ़ गया है.
स्टडी में दावा किया गया है कि बच्चे (Child) का जेंडर, दवाइयों की खुराक, उम्र और अलग-अलग दवाइयां (Medicines) भी उन पर बुरा असर डालती हैं.
- News18Hindi
- Last Updated:
November 18, 2020, 1:08 PM IST
70 फीसदी शिशुओं में पाई गई ये बात
मायो क्लिनिक में छपी इस स्टडी में दावा किया गया है कि बच्चे का जेंडर, दवाइयों की खुराक, उम्र और अलग-अलग दवाइयां भी उन पर बुरा असर डालती हैं. स्टडी के शोधकर्ता नाथन लेब्रेसर ने कहा- ‘हम इस बात को बताना चाहते हैं कि बच्चों में एंटीबायोटिक बीमारियों के समूह की ओर इशारा करती है.’ आपको बता दें कि रोचेस्टर एपिडेमियोलॉजी प्रोजेक्ट ने 14,500 बच्चों पर यह अध्ययन किया है. इनमें से लगभग 70 प्रतिशत बच्चों के एंटीबायोटिक दवा लेने की बात पता चली है.
एंटीबायोटिक न लेना बेहतरशोधकर्ता लेब्रेसर के अनुसार, जिन शिशु ने एक या दो बार एंटीबायोटिक दवा ली है उनमें सियलिक और अस्थमा का खतरा बढ़ गयाहै. शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि एंटीबायोटिक दवा न लेने वाले शिशुओं में इन बीमारियों का कोई सबूत नहीं मिला है. वहीं, तीन से चार बार एंटीबायोटिक लेने वाले शिशुओं में अस्थमा और सियलिक के साथ-साथ एटॉपिक डर्मेटाइटिस और मोटापे की शिकायत आई है.
इन एंटीबायोटिक से करें परहेज
वहीं चार से पांच बार की कंडीशन में शिशुओं के लिए जोखिम बहुत ज्यादा बढ़ जाता है और इसमें शिशु एडीएचडी और राइनाइटिस जैसी खतरनाक बीमारियों की चपेट में आ जाता है. शोधकर्ताओं ने पेंसिलीन और सेफ्लोस्पोरिन जैसी एंटीबायोकि दवाओं को शिशुओं के लिए खतरनाक बताया है. इससे बच्चों में फूड एलर्जी और ऑटिज्म की बड़ी समस्या होती है.