हर साल 3 दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय विकलांगता दिवस (International Day of Disabled Persons 2020) मनाया जाता है और इसका मकसद उन बीमारियों और विकारों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ ही जागरूकता फैलाना है जो न केवल लोगों को अक्षम बनाती हैं बल्कि उनकी सेहत और जीवन की गुणवत्ता पर भी लंबे समय तक नकारात्मक असर डालती हैं. दुनिया के मशहूर खगोलभौतिकविद (astrophysicist) स्टीवन हॉकिन्स जो कई दशकों तक मोटर न्यूरॉन बीमारी (Neuron Disease) से पीड़ित थे ने WHO की विकलांगता पर वर्ल्ड रिपोर्ट 2011 में बताया था, “दुनियाभर की सरकारें अब उन लाखों-करोड़ों विकलांगों को नजरअंदाज नहीं कर सकतीं, जो स्वास्थ्य, पुनर्वास, सहायता, शिक्षा और रोजगार से वंचित हैं और जिन्हें चमकने का मौका कभी नहीं मिला.”
ऐसे लोगों के लिए बाधाओं को दूर करना बेहद जरूरी है- न सिर्फ शारीरिक और मेडिकल स्वास्थ्य संबंधी पहुंच से जुड़ी बाधाएं बल्कि सामाजिक रूकावटें भी जैसे- कलंक (स्टिगमा) आदि. लिहाजा इस साल 2020 में विकलांग व्यक्तियों के लिए बने इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस का मुख्य फोकस और थीम है- “सभी विकलांगता दिखाई नहीं देती है”.
अदृश्य विकलांगता भी समान रूप से हानिकारक होती हैइस साल की विकलांगता दिवस की थीम को पूरे ध्यान से तैयार किया गया है और इसका मकसद यह दिखाना है कि ऐसी विकलांगता जो दूसरों को तुरंत स्पष्ट रूप से नजर नहीं आती लेकिन यह रोगियों, उनके प्रियजनों और देखभाल करने वालों के जीवन पर गहरा और संभावित विनाशकारी प्रभाव डालती है. WHO की 2011 की विश्व विकलांगता रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की करीब 15 प्रतिशत आबादी किसी न किसी तरह की विकलांगता के साथ जी रही है और यह वैश्विक अनुमान तेजी से बढ़ रहा है. विकलांगता में हुई इस बढ़ोतरी का कारण बूढ़ी होती वैश्विक जनसंख्या के साथ ही लंबे समय तक रहने वाली पुरानी बीमारियों का प्रसार भी है.
विकलांगता के इन आंकड़ों के बढ़ने का एक अन्य कारण जिसे एक पॉजिटिव कारण भी कहा जा सकता है- वो ये है कि विकलांगों के निदान और आकलन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कार्यप्रणाली में सुधार हो रहा है. यह कारण खासतौर पर अदृश्य विकलांगता के लिए सच है, जिसपर कई दशक पहले किसी का ध्यान नहीं गया था और इनका इलाज भी नहीं हो पाता था. यहां पर हम आपको कुछ अदृश्य विकलांगताओं के बारे में बता रहे हैं जो उन लोगों के जीवन पर अत्यधिक प्रभाव डालता है जिनके साथ वे व्यक्ति जीते हैं.
1. मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारियां
आपने भले ही यह महसूस न किया हो लेकिन जिन लोगों को मानसिक बीमारियां होती हैं वे भी निःशक्त या विकलांग माने जाते हैं. विश्व विकलांगता रिपोर्ट में बताया गया है कि जो लोग ऐंग्जाइटी, डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर, ईटिंग डिसऑर्डर, पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर और ऑब्सेसिव कम्प्लसिव डिसऑर्डर जैसी मानसिक बीमारियों से पीड़ित होते हैं वे बहुत सी परिस्थितियों में सुविधाहीन होते हैं उन लोगों की तुलना में जो शारीरिक या संवेदी दुर्बलताओं का अनुभव कर रहे होते हैं. इस तरह की परिस्थतियां न सिर्फ वयस्कों में तेजी से बढ़ रही हैं बल्कि बच्चों और किशोरों को भी प्रभावित करते हैं. WHO कहता है कि दुनियाभर के करीब 20 प्रतिशत बच्चे और किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या है.
2. लंबे समय तक रहने वाला पुराना दर्द और थकान
जिन लोगों को लंबे समय तक रहने वाले (क्रॉनिक) दर्द से जुड़ी बीमारी जैसे- फाइब्रोमाइल्जिया होता है वे न सिर्फ हर दिन दर्द से जूझ रहे होते हैं बल्कि उनकी बीमारी सही से डायग्नोज नहीं हो पाती, बीमारी को गलत समझा जाता है और बीमारी का सही तरीके से इलाज भी नहीं हो पाता है. हार्वर्ड हेल्थ में प्रकाशित एक आर्टिकल में बताया गया है कि कई बार डॉक्टर गंभीर चोट या गठिया जैसी बीमारी की अनुपस्थिति में पुराने दर्द को समझने में विफल होते हैं और इसलिए बेहतर प्रशिक्षण के जरिए इसे बदलने की जरूरत है. वहीं दूसरी तरफ क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम (सीएफएस) वाले लोगों को एक अदृश्य विकलांगता के रूप में मान्यता दी गई है. बीएमसी साइकायट्री में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सीएफएस की वजह से मांसपेशियों में दर्द, सोते वक्त ऐंग्जाइटी महसूस होना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं जो विकलांगता की अलग-अलग डिग्री का कारण बनता है.
3. मस्तिष्क में लगने वाली चोट
रीढ़ की हड्डी में लगने वाली दर्दनाक चोट या आघात का अक्षम प्रभाव शरीर के बाकी हिस्सों में आसानी से दिखाई देता है लेकिन मस्तिष्क में लगने वाली दर्दनाक चोट (टीबीआई) का प्रभाव- विशेष रूप से माइल्ड ट्रॉमैटिक ब्रेन इंजूरी- अक्सर अदृश्य रह जाता है जब तक वे गंभीर न्यूरोलॉजिकल या संज्ञानात्मक समस्याओं में विकसित नहीं हो जाते. साइंटिफिक रिपोर्ट्स नाम के जर्नल में साल 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया है कि टीबीआई की वजह से न सिर्फ याददाश्त, तर्क और संचार से जुड़ी दिक्कतें होती हैं बल्कि मूवमेंट कोऑर्डिनेशन, संतुलन, नेत्र संबंधी कार्य, सामाजिक व्यवहार भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है और भविष्य में व्यक्ति को डिमेंशिया और डिप्रेशन होने का भी खतरा हो सकता है.
4. न्यूरोलॉजिकल बीमारियां
द लैंसेट न्यूरोलॉजी में साल 2019 में प्रकाशित एक स्टडी में सुझाव दिया गया है कि न्यूरोलॉजिकल और संज्ञानात्मक विकारों को अब दुनिया भर में मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारण के रूप में मान्यता दी गई है और इसका असर भी बहुत गहरा होता है. न्यूरोलॉजिकल विकलांगता से जुड़ी बीमारी में मिर्गी और सेरेब्रल पाल्सी से लेकर अल्जाइमर्स और एमियोट्रोफिक लैट्रल स्क्लेरोसिस (एएलएस) जैसी बीमारियां शामिल हैं. इन बीमारियों में अधिकांश लंबे समय तक रहने वाली क्रॉनिक और प्रगतिशील हैं, जिसका अर्थ है कि ये न केवल जीवन भर रहती हैं बल्कि समय के साथ व्यक्ति को और अधिक विकलांग बनाने लगती हैं.
5. बुद्धि और विकास से जुड़ी विकलांगता
अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ (NIH) के अनुसार, बौद्धिक और विकासात्मक विकलांगता जन्मजात होती है, जिसका अर्थ है कि वे जन्म के समय मौजूद होती हैं और इसलिए जीवन भर बनी रहती हैं और इसकी वजह से बहुत छोटी उम्र से ही बच्चों में प्रमुख समस्याएं दिखने लगती हैं. विकलांगता से जुड़ी इन समस्याओं में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर और डाउन सिंड्रोम शामिल है और यह माता-पिता और बच्चों की देखभाल करने वालों के लिए भी हानिकारक और परेशान करने वाला हो सकता है. इन विकारों से पीड़ित लोग दूसरों की तरह सामान्य कार्य करने में असमर्थ होते हैं, जिसकी वजह से वे आइसोलेट हो जाते हैं और मानसिक बीमारियों का भी शिकार हो जाते हैं.अधिक जानकारी के लिए पढ़ें हमारा आर्टिकल मानसिक रूप से अक्षम बच्चों की मदद कैसे करें. न्यूज18 पर स्वास्थ्य संबंधी लेख myUpchar.com द्वारा लिखे जाते हैं. सत्यापित स्वास्थ्य संबंधी खबरों के लिए myUpchar देश का सबसे पहला और बड़ा स्त्रोत है. myUpchar में शोधकर्ता और पत्रकार, डॉक्टरों के साथ मिलकर आपके लिए स्वास्थ्य से जुड़ी सभी जानकारियां लेकर आते हैं.