एक स्टडी में सामने आया है कि सीपीसी आधारित माउथवॉश कोरोना वायरस संक्रमण से सुरक्षा कर सकते हैं (सांकेतिक फोटो, News18)
कोरोना वायरस (Covid 19) को मारने के लिए एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि माउथवॉश से कोरोना वायरस को 30 सेकंड में मारा जा सकता है…
- News18Hindi
- Last Updated:
November 22, 2020, 7:13 AM IST
डॉक्टर निक क्लैडन नामक पीरियडंटोलोजिस्ट ने स्टडी के परिणामों को समझाते हुए कहा कि माउथवॉश से कोरोना वायरस के जल्दी मरने के संकेत प्राप्त हुए हैं. हालांकि यह भी कहा गया कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए माउथवॉश से इलाज के सबूत नहीं है क्योंकि यह फेफड़ों और श्वसन तंत्र तक नहीं पहुंच सकता जहां वायरस सबसे ज्यादा आक्रमण करता है. अध्ययन में पाया गया कि माउथवॉश में 0.07 फीसदी सिटीपीरीडिनियम क्लोराइड (CPC) पाया जाता है. इसे लैब जैसे किसी विशेष स्थान पर रखने पर वायरस मारने में सहायता मिल सकती है. हालांकि वैज्ञानिक वायरस के उपचार में इसके प्रभाव के बारे में सुनिश्चित नहीं हैं.
A group of scientists has called for urgent research into whether readily-available mouthwash could be effective in reducing SARS-CoV-2 transmission.https://t.co/4OQRqco7cf pic.twitter.com/1CyDA9d90U
— Cardiff University (@cardiffuni) May 14, 2020
एक अन्य स्टडी में भी यह बात सामने आई है कि CPC आधारित मुंह का कुल्ला करने वाले पदार्थों से वायरस काउंट कम करने में मददगार है. कोरोना वायरस पर रिसर्च करने वाले ज्यादातर वैज्ञानिकों ने माउथवॉश के दावों को मानने से इंकार करते हुए इस पर और ज्यादा रिसर्च की जरूरत बताई है. अमेरिका के वैज्ञानिक डॉक्टर ग्राहम सिन्डर का कहना है कि कई ऐसी चीजें हैं जिनके सम्पर्क में आने से वायरस मर सकता है लेकिन पूरी तरह से इसके सोर्स को खत्म नहीं किया जा सकता. पिट्सबर्ड यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ मेडिसिन के एसोशिएट प्रोफ़ेसर सिन्डर ने कहा कि अल्कोहोल, क्लोरेक्सीडाइन, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, आदि वायरस को मारने में सक्षम हैं लेकिन इसका कोई सबूत नहीं है कि ये वायरस का ट्रांसमिशन रोक सकते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ मैरीलैंड में वायरस ट्रांसमिशन पर स्टडी करने वाले वैज्ञानिक डॉक्टर डोनाल्ड मिल्टन ने कहा कि माउथवॉश वायरस को मार तो सकता है लेकिन यह आपके नाक, फेफड़े और सांस लेने की जगहों पर मौजूद रहता है और वहां इसे नहीं मारा जा सकता है.
कार्डिक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कहा है कि उनकी रिसर्च की अभी समीक्षा नहीं हुई है इसलिए निष्कर्षों को कोरोना वायरस के लिए प्रोपर इलाज नहीं माना जाना चाहिए. उन्होंने लोगों से सरकार द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करने के लिए कहा है.