और यह तो आप जानते ही हैं कि ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ इसलिए देश में इस दिशा में काफी तेज़ी से काम चल रहा है. सलाइवा, कफ की आवाज़ और सांस से जुड़े सैंपलों से टेस्ट किए जाने की तमाम गुंजाइशें टटोली जा रही हैं. अब तक प्रचलित RT-PCR टेस्ट की तुलना में ये टेस्ट काफी आसान भी होंगे और इन्हें आप अपने आप कर सकेंगे. आइए ऐसे कुछ टेस्ट्स के बारे में जानें.
क्या है IISc-B का को-स्वरा प्रोजेक्ट?
बेंगलूरु स्थित भारतीय विज्ञान इंस्टीट्यूट के रिसर्चर कोविड 19 की जांच करने के लिए ऐसे प्रयोग पर काम कर रहे हैं, जो कफ और आवाज़ के ज़रिये पुष्टि कर सके कि आप कोरोना पॉज़िटिव हैं या नहीं. IISc को इस प्रयोग के लिए ICMR से मंज़ूरी भी मिल चुकी है और कोविड के मरीज़ों की सांस संबंधी आवाज़ से जुड़ा डेटा भी. यही नहीं, यह प्रयोग कामयाब हुआ तो मोबाइल एप के तौर पर टेस्ट करने की भी सुविधा मिलेगी.
स्वाब टेस्ट में एक नली नाक या मुंह में डालकर गले से सैंपल लिया जाता है.
बताया जा चुका है कि इस टेस्ट के लिए व्यक्ति को सिर्फ अपनी आवाज़ रिकॉर्ड करनी होगी और एप के ज़रिये उसे पता चल जाएगा कि उसमें कोविड के लक्षण हैं या नहीं. इस टेस्ट के बारे में विस्तार से इसके आधिकारिक पोर्टल पर जानकारी ली जा सकती है.
मुंबई में भी ऐसा ही प्रयोग
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के वाधवानी इंस्टिट्यूट में गेट्स फाउंडेशन और अमेरिकी वित्तीय सहायता से AI तकनीक के ज़रिये कोविड 19 को पहचानने के लिए कफ साउंड का प्रयोग किया जा रहा है. इस प्रयोग में भी व्यक्ति को स्मार्टफोन पर अपनी आवाज़ रिकॉर्ड कर अपने लक्षण संबंधी रिपोर्ट देना होगी और पता चल जाएगा कि वह पॉज़िटिव है या नहीं.
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इस प्रयोग को साढ़े तीन हज़ार लोगों पर किया जा चुका है और नतीजों के बारे में अध्ययन जारी है. ऑडियो सैंपलों की जांच के लिए रिसर्चरों ने तकनीक विकसित की है. इस टूल के ज़रिये हेल्थकेयर सेक्टर की टेस्टिंग क्षमता के 43 फीसदी तक बढ़ने की बात कही जा रही है.
‘गरारे और थूक’ वाला टेस्ट
दिल्ली स्थित एम्स में हुए एक छोटे से अध्ययन में देखा गया कि कोविड पॉज़िटिव मरीज़ों ने जिस पानी से गरारे कर थूका, उसमें कोरोना वायरस की मौजूदगी के सबूत पाए गए. अब इस संभावना पर अध्ययन जारी है कि नाक में नली डालकर गले से स्वाब लेने के कठिन तरीके से टेस्ट के बजाय क्या यह गरारे वाला सैंपल लेकर RT-PCR टेस्ट किया जा सकता है.
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खबरों में ये भी कहा गया कि कनाडा में गरारे के सैंपल लेकर कोविड टेस्ट किए जाने की पहल हो चुकी है. इसमें व्यक्ति को सलाइन वॉटर से 30 सेकंड तक गरारे करने के बाद पानी को एक ट्यूब में थूकना होता है. यह तरीका स्वाब टेस्ट की तुलना में लोगों के लिए काफी सुविधाजनक है.

स्वाब सैंपल टेस्ट के विकल्प तलाशे जा रहे हैं.
इज़राइल के साथ मिलकर कई प्रयोग
दिल्ली स्थित राममनोहर लोहिया अस्पताल में भारत और इज़राइल मिलकर ऐसे प्रयोग कर रहे हैं जिनसे एक मिनट के भीतर कोरोना वायरस की पहचान हो सके. इनमें एक तकनीक वॉइस टेस्ट की है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के ज़रिये किसी की आवाज़ से वायरस पॉज़िटिव होने की पहचान की जा सकेगी. दूसरी तकनीक में ब्रीद एनालाइज़र को लेकर प्रयोग चल रहा है. अगर कोई व्यक्ति एक ट्यूब में गहरी सांस या फूंक छोड़े तो क्या उससे कोरोना टेस्ट हो सकता है, यह देखा जा रहा है.
ब्रीद एनालाइज़र टेस्ट की एक्यूरेसी इज़राइल में 85 फीसदी तक बताई जा चुकी है. इनके अलावा, सलाइवा सैंपल की आइसोथर्मल जांच और पॉलीअमीनो एसिड के इस्तेमाल के ज़रिये टेस्टिंग को लेकर कुछ प्रयोग चल रहे हैं.
वास्तव में, दुनिया भर में नाक और गले से स्वाब सैंपल लेकर टेस्ट किया जाना बेहद तकलीफदेह तरीका पाया गया और इससे निजात के लिए अन्य विकल्पों की तलाश शुरू हुई. दूसरे मौजूदा ज़्यादातर टेस्टों में रिज़ल्ट आने में काफी समय लग रहा है. इसी सिलसिले में कई ऐसे प्रयोग जारी हैं ताकि लोगों को कम से कम तकलीफ देकर नमूने जुटाकर जल्द से जल्द टेस्ट किया जा सके.