न्यूज़18 क्रिएटिव
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से शशि थरूर (Shashi Tharoor) और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) तक ने केंद्र सरकार को इस मुद्दे पर खूब घेरा क्योंकि कोरोना (Coronavirus) और लॉकडाउन (Lockdown) के हालात के बारे में संसद में रिकॉर्ड मांगा गया तो सरकार ने खुद माना कि उसके पास आंकड़े नहीं हैं.
- News18India
- Last Updated:
September 29, 2020, 2:44 PM IST
डेटा क्यों नहीं है? इस सवाल के जवाब में कई थ्योरीज़ हैं. कुछ मामलों में डेटा रखना राज्यों की ज़िम्मेदारी बताई गई, तो कुछ मामलों में विश्वसनीयता न होने के चलते डेटा कलेक्शन पर ही सवाल उठाए गए. निजी एजेंसियों, संस्थाओं और स्रोतों के डेटा के साथ भी सरकार ने कोई गठजोड़ न करने का विकल्प अपनाया.
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कहा तो ये भी जा रहा है कि यूपीए सरकार पर डेटा देने में देर करने के आरोप लगाने वाली एनडीए सरकार कुछ मामलों पर जान बूझकर डेटा छुपा भी रही है. हालांकि असलियत क्या है, यह तो समय के साथ पता चलेगा, लेकिन फिलहाल चिंता की बात ये है कि सरकार क्या वाकई डेटा जुटाने के लिए कुछ कोशिशें कर रही है.
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किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकारी आंकड़े सबसे अहम स्रोत माने जाते हैं, जिन पर नीतियां, नागरिक सहभागिता और सबसे खास बात व्यवस्था की जवाबदेही व सुधार की प्रक्रिया तय होती है. इस साल बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नीतियां और विकास तय करने के लिहाज़ से ‘डेटा को नया तेल’ कहा था.
No #data on migrant workers, no data on farmer suicides, wrong data on fiscal stimulus, dubious data on #Covid deaths, cloudy data on GDP growth — this Government gives a whole new meaning to the term #NDA! pic.twitter.com/SDl0z4Hima
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) September 22, 2020
इसके बावजूद संसद में ‘डेटा नहीं है’, सरकार से कई बार सुनने को मिला. खबरों के आधार पर कोविड से जुड़े उन 10 पहलुओं के बारे में आपको बताते हैं, जिनसे मुतालिक डेटा होने से सरकार ने इनकार कर दिया.
24 मार्च से लॉकडाउन के चलते लाखों माइग्रेंट वर्करों ने पलायन शुरू किया था. इसके बाद कई माइग्रेंट वर्करों और उनके परिजनों की मौतों की खबरें आती रहीं. इसके बावजूद, संसद में इन मौतों के आंकड़े से जुड़े एक सवाल के जवाब में सरकार ने डेटा न होने की बात कही.
माइग्रेंट वर्करों की मौतों से जुड़े एक और सवाल के जवाब में संसद में सरकार ने कहा चूंकि कोविड के दौर में इन मज़दूरों या कामगारों की मौतों का कोई आंकड़ा ही नहीं है इसलिए मुआवज़े का सवाल ही नहीं उठता.
देश भर में कोविड 19 के चलते बेरोज़गारी बेतहाशा बढ़ी और खबरें आती रहीं कि किस तरह से लोगों को इस संकट से गुज़रना पड़ा. लेकिन सरकार ने जॉब्स पर पड़े कोविड के असर संबंधी डेटा भी नहीं जुटाया. 14 सितंबर को संसद में श्रम व रोज़गार मंत्रालय से यह सवाल पूछा गया था, लेकिन मंत्री संतोष गंगवार ने डेटा न होने की बात कही.
75 दिनों तक लॉकडाउन में रहने वाले और दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश में कोरोना के कारण कितने हेल्थ वर्करों की मौतें हुईं? इस सवाल पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस तरह के डेटा से भी पल्ला झाड़ा. दूसरी ओर, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मुताबिक 2239 डॉक्टरों के संक्रमित होने और 383 के मारे जाने का डेटा है. आईएमए ने इस मुद्दे पर यह भी कहा कि हेल्थ वर्करों को ‘कोरोना योद्धा’ कहा गया, लेकिन उनके बारे में डेटा तक न रखना उनके योगदान का अपमान करना है.
देश भर में असंगठित कामगारों, अनुबंधित वर्करों और श्रमिकों के बारे में क्या सरकार किसी तरह का रिकॉर्ड रख रही है? इस सवाल के जवाब में भी केंद्र सरकार के पास कोई डेटा नहीं निकला. इधर, आर्थिक ग्रोथ के करीब 24 फीसदी लुढ़क जाने पर तमाम अर्थशास्त्रियों ने कहा कि आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था को इससे भी खराब समय देखना पड़ सकता है.
महामारी और लॉकडाउन के दौरान कितने सफाई कर्मचारियों ने दम तोड़ा? सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण मंत्रालय ने राज्य सभा में कहा कि अस्पतालों की सफाई या मेडिकल वेस्ट के कामों में लगे कितने सफाई कर्मियों की मौत असुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों से हुई, इसका कोई डेटा नहीं है.
देश में कोविड 19 के मरीज़ों के लिए कितने प्लाज़्मा बैंक चल रहे हैं? क्या सरकार और भी प्लाज़्मा बैंकों के लिए कोशिश कर रही है? यदि हां तो किस तरह? स्वास्थ्य राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने इन सवालों के जवाब में कहा कि इस बारे में राज्य उत्तरदायी हैं, और केंद्रीय स्तर पर इस तरह का डेटा नहीं रखा गया है.
महामारी और लॉकडाउन के दौरान पुलिस द्वारा की गई ज़्यादतियों के बारे में संसद में डेटा मांगा गया, यह भी पूछा गया कि इन ज़्यादतियों के नतीजे में रेप, उत्पीड़न और मौतों की कितनी घटनाएं हुईं. लेकिन सरकार के पास इस डेटा के बारे में भी वही जवाब था, नहीं.
डीएमके सांसद कनिमोई ने संसद में सवाल पूछा था कि लॉकडाउन के दौरान शिक्षा संबंधी तनाव से जूझ रहे कितने छात्रों ने आत्महत्या की और इसके क्या कारण रहे. इस सवाल के जवाब में भी सरकार के पास कोई डेटा नहीं था.
महामारी से बने हालात के चलते कितने लघु और मध्यम उद्यमों यानी MSME के बंद होने की नौबत आई? इस सवाल पर सरकार के राज्य मंत्री ने राज्य सभा में कहा कि अस्थायी तौर पर कुछ सेक्टरों में ऐसे उद्यमों पर असर पड़ा था, लेकिन डिटेल्स उपलब्ध नहीं हैं. हैरानी की बात तो तब हुई जब ये भी कहा कि वित्त वर्ष 2014-15 से 2019-20 के बीच ऐसे कितने उपक्रम बंद हुए, इस बारे में भी कोई रिकॉर्ड सरकार नहीं दे सकी.
कोविड संबंधी हालात के अलावा, कितने आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हुई या जीडीपी में स्टार्ट अप्स का क्या योगदान रहा या दुनिया में भ्रष्टाचार के मामले में भारत की स्थिति क्या है, जैसे डेटा के सवालों पर भी सरकार की झोली खाली ही दिखाई दी.