संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आए व्यक्ति को ट्रेस करना कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग है.
कोरोना वायरस (Corona virus) से संक्रमित व्यक्ति जिस के सम्पर्क में जो लोग आए, उनको भी ट्रेस करके आइसोलेशन (Isolation) में भेजना कॉन्टक्ट ट्रेसिंग (Contact Tracing) कहलाता है.
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दस मिनट से ज्यादा समय तक और छह फीट की कम दूरी में जो व्यक्ति किसी संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आता है, उसकी तलाश कर उसे सेल्फ आइसोलेशन में भेजा जाता है. इसके बाद उसके लक्षणों पर निगरानी रखी जाती है और जरूरत पड़ने पर टेस्ट भी किया जाता है. लक्षण दिखाए देने के बाद ट्रेस करने की प्रोसेस फिर से शुरू होगी. वर्ल्ड में अलग-अलग तरीके से कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग की जाती है. इसमें मुख्य बात यह है कि व्यक्ति किसके सम्पर्क में रहा. परिवार के सदस्य, दोस्त आदि इनमें हो सकते हैं.
ये भी पढ़ें – हर समय उल्टी जैसा महसूस होने का कारण ओवरईटिंग, तनाव भी हो सकता हैस्वास्थ्य अधिकारी लोगों को स्वचालित टेक्स्ट कर सकते हैं. वे कॉल भी कर सकते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, को कॉल और मैसेज का जवाब नहीं देते. इससे भी जल्दी कार्य करने का दबाव बनता है. ज्यादातर व्यक्ति एक दिन के भीतर सतर्क हो जाते हैं. कोरोना वायरस का वर्ल्ड से जब पहली बार परिचय हुआ था. तब कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग काफी जोरों से देखने को मिली थी. यह काम काफी तेजी से होते हुए देखा गया था.