सिर्फ कोविड 19 ही नहीं, पहले भी, वैक्सीनों का ट्रांसपोर्टेशन अच्छी खासी चुनौती रहा है क्योंकि ज़रूरत से ज़्यादा गर्मी, ठंडक या रोशनी के कारण वैक्सीन नष्ट हो सकती है. यह भी गौरतलब है कि भारत एक बड़ा देश है और यहां का मौसम गर्म रहता है इसलिए यहां कोने कोने तक वैक्सीन को पहुंचाने की कसरत भी काफी अहम रहने वाली है. भारत जैसे या क्षेत्रफल में उससे बड़े किसी भी देश में यह कसरत अच्छी खासी होगी.
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क्या है भारत में चुनौती?वैश्विक टीकाकरण कार्यक्रम के लिए भारत में कोल्ड स्टोरेज का जो नेटवर्क है, उसमें 28000 ऐसे केंद्र हैं, जहां वैक्सीन का कोल्ड स्टोरेज संभव है. लेकिन फ़िलहाल किसी भी वैक्सीन उत्पादक कंपनी के पास -25 डिग्री सेल्सियस से ठंडे तापमान पर वैक्सीन को ट्रांसपोर्ट कर सकने की क्षमता नहीं है. इस मुश्किल से निपटेन का एक रास्ता तो यह है कि इस तरह की वैक्सीनों का उत्पादन किया जा सके, जिन्हें बहुत ठंडे तापमान पर ट्रांसपोर्ट करने की ज़रूरत ही न हो.
कोविड के खिलाफ वैक्सीनों का उत्पादन शुरू हो चुका है.
खबरों की मानें तो भारत में ही ऐसे कुछ टीके विकसित किए जाने की कोशिश जारी है, जिन्हें ज़्यादा तापमान पर रखे जाने से नुकसान नहीं होगा. अगर ऐसा संभव हो सका, तो भारत के मौसम के अनुकूल स्थितियां हो सकती हैं.
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दूसरी तरफ, जबसे कोविड 19 के खिलाफ वैक्सीन विकसित होने के बारे में सकारात्मक नतीजों की खबरें आना शुरू हुई हैं, तबसे भारत सरकार ने कोल्ड स्टोरेज की चेन की सुविधा की निगरानी शुरू कर दी है और तमाम देशवासियों तक वैक्सीन पहुंच सके, इसके लिए वैक्सीन को सुरक्षित रखने के नेटवर्क को दुरुस्त किया जा रहा है. अब जानिए कि वैक्सीन किस तरह नागरिकों तक पहुंचेगी.
कैसे होगा वैक्सीन का ट्रांसपोर्ट?
इम्यूनिटी डेवलप करने वाली वैक्सीन के लिए एक पूरी कोल्ड चेन तैयार की जाती है, जिससे उसे फैक्ट्री से उस सीरिंज तक पहुंचाया जा सके, जिसके ज़रिये आपके शरीर में वैक्सीन जाएगी. ट्रांसपोर्ट के रूट में सबसे पहले वैक्सीन फैक्ट्री से उन ट्रकों में लोड की जाती है, जो पूरी तरह से रेफ्रिजरेटेड होते हैं. इसके बाद ये ट्रक हवाई अड्डों पर पहुंचते हैं और फिर बर्फ से पैक्ड थर्माकोल के बक्सों में वैक्सीनों के बॉक्स रखकर उड़ानों में लोड किए जाते हैं.

नेटवर्क 18 इन्फोग्राफिक
फिर दूसरे हवाई अड्डे पर अनलोड होकर उसी तरह के ट्रकों से वैक्सीन सरकारी मेडिकल स्टोरों के डिपो तक पहुंचती है, जहां कोल्ड स्टोरेजों की सुविधा हो. भारत में चार दिशाओं में करनाल, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में ऐसे डिपो हैं. यहां से राज्यों के स्टोरों और फिर ज़िलों के स्टोरों तक वैक्सीन पहुंचती है. ज़िले के मुख्यालय से वैक्सीन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों तक पहुंचती है.
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छोटे केंद्रों में वैक्सीन को सामान्य घरेलू रेफ्रिजरेटरों या फिर डीप फ्रीज़रों में स्टोर किया जाता है. इस पूरी चेन में ध्यान रखने की बात यही है कि अगर कहीं भी कोल्ड चेन में कोई रुकावट आई और वैक्सीन को सही तापमान नहीं मिला, तो वैक्सीन की क्षमता या असर कम हो सकता है.
किस वैक्सीन के लिए कितना तापमान?
दुनिया भर में कोविड से लड़ने के लिए कारगर वैक्सीनों में सबसे पहले फाइज़र बायोएनटेक की वैक्सीन की बात की जाए तो इसे -60 से -90 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर स्टोर करने की ज़रूरत पेश आएगी. और भारत में इस स्टोरेज की सुविधा है ही नहीं. भारत ही क्या, ज़्यादातर देशों में यह सुविधा नहीं है.

मॉडर्ना और ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन का ट्रांसपोर्ट व स्टोरेज भारत की क्षमता के अनुकूल है.
दूसरी तरफ, मॉडर्ना ने जो वैक्सीन डेवलप की है, उसे -20 डिग्री तक स्टोर किया जा सकता है, जो सुविधा भारत में है. साथ ही, इस वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री के तापमान पर भी एक महीने तक रखा जा सकता है, जो कि सामान्य रेफ्रिजरेटरों में मुमकिन है. इस लिहाज़ से यह वैक्सीन भारत और ज़्यादातर देशों के लिए मुफीद है. लेकिन, भारत में इस तरह के स्टोरेज की सुविधा भी सीमित है. इससे पहले, पोलियो की वैक्सीन को भारत में -20 डिग्री तापमान में रखा गया था.
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स्पूतनिक वैक्सीन के स्टोरेज का मामला भी तकरीबन मॉडर्ना की वैक्सीन की तरह ही है. वहीं, एस्ट्राज़ेनेका और ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री तापमान पर रखा जा सकता है लेकिन भारत में इसकी सुविधा होने के बाद यह अभी नहीं पता है कि इस वैक्सीन को सुरक्षित स्टोर करने के लिए क्षमता और कितनी बढ़ानी होगी.